गुणकारी गिलोय
कुदरत के कोष में रक्षित अनन्य जड़ी बूटियो में एक और भी है। जिसको लोग गिलोय के नाम से जानते है। बिना किसी खेत और सुरक्षा या खाद-पानी के स्वतः ही फूलने वाली इस इस बूटी से अनगिनत स्वास्थ्य रक्षक नुस्खे अपने में छिपा रखे है।
विपरीत परिस्थियों में पनपने वाली यह लता कई बीमारियों में उपयोगी है। सारे भारत में पाई जाने वाली इस जड़ी को गुडूची, मधुपर्णी, अमृता, छिन्नरुहा, गुडिच, गुलवेल, गलो, गिलो और टिनो स्पोरा, कोर्डीफोलिया के नाम से जाना जाता है।
आयुर्वेद में वर्णित वात, पित्त, कफ जो त्रिदोष के नाम से भी जाने जाते है, को सामान्य रूप से शमन करने से सक्षम है।
निरन्तर, या एक दिन छोड़कर जाड़ा लगकर, या चौथे दिन आने वाला या अन्य किसी भी बुखार में इसका प्रयोग हानिकारक नहीं बल्कि लाभकारी ही है।
लता के रूप पर पेड़ो पर फैलने वाली है। मानो सुखी हो लेकिन जरा छिलका हटाते ही तरो ताजा हरी नज़र आती है। अन्य पेड़ों के अपेक्षा नीम के पेड़ पर चढ़ी यह बेल उत्तम मानी जाती है।
यह कुष्ठरोग में लाभकारी, दर्द दूर करने वाली, प्यास बुझाने वाली, दीपन, पाचन करने वाली है। आमाशय को अम्लता दूर कर हृदय को बाल देने वाली है।
रक्तविकार, चर्मरोग, पाण्डूरोग, पीलिया, में गुणकारी है। दुर्बलता, मधुमेह तथा ज्वर के लिए उपयोगी है।
आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों ने तो इसे छोटे से छोटे विषाणू से लेकर स्थूल कृमियो तक पर असर कारी माना है।
अन्य विकार में चाहे नेत्र विकार हो वमन(उल्टी), कमला, पीलिया, गुलकृच्छ, पेशाब का बूंद बूंद आना, हांथीपाँव, गठिया, शीतपित्त, जीर्ण ज्वर पुराना बुखार यंहा तक (टी. वी.) राजक्षमा में अत्यंत उपयोगी है।
धुप तथा गर्मी में जीवित रहने वाली यह लता लगाने में बड़ी आसान है। किसी गमले में इसका टुकड़ा लगा देने में कुछ ही दिनों में हराभरा हो जायेगा।
बुखारों में कई कारणों से और लक्षणों वाले बुखार होते है। ऐसे भी बुखार हो तो जिनके कारणों का पता नहीं लगता, उसके उपचार में भी गिलोय सहायक सिद्ध होती है।
बार बार होने वाला मलेरिया में भी इसका प्रयोग लाभकारी है इसके सेवन से (मधुमेह) डायबिटीज़ (रक्त में शर्करा) जिसको ब्लड शुगर के नाम से जानते है लाभ होता है।
बुखार या लम्बी बिमारी से छुटकारा पाने के लिए रोगी को इसके काढ़े का प्रयोग अतिउपयोगी है। एलर्जी तथा सभी चर्म विकारो में इसका सेवन गुणकारी है।
इसके सेवन का विशेष तरीका यह भी है कि घी के साथ लेने से वाट (वायु ) रोग मिश्री के साथ पित्तरोग, और शहद के साथ सेवन करने से कफ दोष का निवार्ण होता है।
गिलोय एक अति उच्च कोटि की शोधक और शक्ति वर्धक औषधि है।
कहा यह भी जाता है कि देव और दानवों में जो अमृत पीने को लेकर युद्ध हुआ तब अमृत कलश से छीना झपटी में कुछ बूंदे जहा गिर गई वही यह लता जम गई और अमृता के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
1. ज्वर :- सभी बुखारों में गिलोय के साथ धनिया और नीम की छाल मिला काढ़ा पिलाना हितकर है।
2. प्रमहे :- में इसका रस शहद से देना हितकर है।
3. जोड़ो के दर्द में :- इसके काढ़े में एरण्ड का तेल मिला कर सेवन किया जाता है।
4. रक्त विकारों में :- इसका सेवन गूगल के साथ करना चाहिये।
5. हिचकी :- में सौंठ और गिलोय का चूर्ण मिला कर सुंघाना लाभकारी है।
6. पैर के तलवे में :- जलन होतो गिलोय का चूर्ण और एरण्ड के बीज दही के साथ पीस कर लगाए।
7. कब्ज :- के लिए इसका चूर्ण गुड़ के साथ खाना हितकर है।
8. पीलिया :- में गिलोय को चन्दन की तरह घिस कर पानी में घोलकर गुनगुना कर कान में टपकाये इस से पीलिया में लाभ होगा कान का मैल भी निकल जायगा।
9. मूत्र विकार :- में इसका काढ़ा पीने से पेशाब की सभी परेशानियां दूर होती है।
10. भूख की कमी :- होतो सौंठ के चूर्ण के साथ गिलोय का चूर्ण लेना लाभकारी है।
11. श्वेत प्रदर :- (ल्यूकोरिया) के लिए इसका काढ़ा शतावरी चूर्ण के साथ लेना हितकर है।
12. मधुमेह :- डायबटीज़ में इसका ताजा रस दिन में एक दो बार पीना बहुत लाभ करता है।
गिलोय सभी जगह मिलने वाली साधारण सी लेकिन बहुत गुणकारी है। लेकिन ज्यादा उत्तम होती है जो नीम के पेड़ पर चढ़ी हो। आयुर्वेद की कई औषधियों में इसका प्रयोग होता है। आज कल तो इसके बने बनाये शर्बत , बाजार में खूब मिलते है।
मात्रा :- तजा रस दस से बीस मि. यानी एक से दो चम्मच चूर्ण ३ ग्राम और सत्व आधा ग्राम से दो ग्राम तक रोगी के बला बल के अनुसार मात्रा घटाई बड़ाई जा सकती है। इसके सेवन से पहले स्थानीय चिकित्सक से परामर्श अवश्य करे।
विपरीत परिस्थियों में पनपने वाली यह लता कई बीमारियों में उपयोगी है। सारे भारत में पाई जाने वाली इस जड़ी को गुडूची, मधुपर्णी, अमृता, छिन्नरुहा, गुडिच, गुलवेल, गलो, गिलो और टिनो स्पोरा, कोर्डीफोलिया के नाम से जाना जाता है।
आयुर्वेद में वर्णित वात, पित्त, कफ जो त्रिदोष के नाम से भी जाने जाते है, को सामान्य रूप से शमन करने से सक्षम है।
निरन्तर, या एक दिन छोड़कर जाड़ा लगकर, या चौथे दिन आने वाला या अन्य किसी भी बुखार में इसका प्रयोग हानिकारक नहीं बल्कि लाभकारी ही है।
लता के रूप पर पेड़ो पर फैलने वाली है। मानो सुखी हो लेकिन जरा छिलका हटाते ही तरो ताजा हरी नज़र आती है। अन्य पेड़ों के अपेक्षा नीम के पेड़ पर चढ़ी यह बेल उत्तम मानी जाती है।
यह कुष्ठरोग में लाभकारी, दर्द दूर करने वाली, प्यास बुझाने वाली, दीपन, पाचन करने वाली है। आमाशय को अम्लता दूर कर हृदय को बाल देने वाली है।
रक्तविकार, चर्मरोग, पाण्डूरोग, पीलिया, में गुणकारी है। दुर्बलता, मधुमेह तथा ज्वर के लिए उपयोगी है।
आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों ने तो इसे छोटे से छोटे विषाणू से लेकर स्थूल कृमियो तक पर असर कारी माना है।
अन्य विकार में चाहे नेत्र विकार हो वमन(उल्टी), कमला, पीलिया, गुलकृच्छ, पेशाब का बूंद बूंद आना, हांथीपाँव, गठिया, शीतपित्त, जीर्ण ज्वर पुराना बुखार यंहा तक (टी. वी.) राजक्षमा में अत्यंत उपयोगी है।
धुप तथा गर्मी में जीवित रहने वाली यह लता लगाने में बड़ी आसान है। किसी गमले में इसका टुकड़ा लगा देने में कुछ ही दिनों में हराभरा हो जायेगा।
बुखारों में कई कारणों से और लक्षणों वाले बुखार होते है। ऐसे भी बुखार हो तो जिनके कारणों का पता नहीं लगता, उसके उपचार में भी गिलोय सहायक सिद्ध होती है।
बार बार होने वाला मलेरिया में भी इसका प्रयोग लाभकारी है इसके सेवन से (मधुमेह) डायबिटीज़ (रक्त में शर्करा) जिसको ब्लड शुगर के नाम से जानते है लाभ होता है।
बुखार या लम्बी बिमारी से छुटकारा पाने के लिए रोगी को इसके काढ़े का प्रयोग अतिउपयोगी है। एलर्जी तथा सभी चर्म विकारो में इसका सेवन गुणकारी है।
इसके सेवन का विशेष तरीका यह भी है कि घी के साथ लेने से वाट (वायु ) रोग मिश्री के साथ पित्तरोग, और शहद के साथ सेवन करने से कफ दोष का निवार्ण होता है।
गिलोय एक अति उच्च कोटि की शोधक और शक्ति वर्धक औषधि है।
कहा यह भी जाता है कि देव और दानवों में जो अमृत पीने को लेकर युद्ध हुआ तब अमृत कलश से छीना झपटी में कुछ बूंदे जहा गिर गई वही यह लता जम गई और अमृता के नाम से प्रसिद्ध हो गई।
औषधीय प्रयोग
1. ज्वर :- सभी बुखारों में गिलोय के साथ धनिया और नीम की छाल मिला काढ़ा पिलाना हितकर है।
2. प्रमहे :- में इसका रस शहद से देना हितकर है।
3. जोड़ो के दर्द में :- इसके काढ़े में एरण्ड का तेल मिला कर सेवन किया जाता है।
4. रक्त विकारों में :- इसका सेवन गूगल के साथ करना चाहिये।
5. हिचकी :- में सौंठ और गिलोय का चूर्ण मिला कर सुंघाना लाभकारी है।
6. पैर के तलवे में :- जलन होतो गिलोय का चूर्ण और एरण्ड के बीज दही के साथ पीस कर लगाए।
7. कब्ज :- के लिए इसका चूर्ण गुड़ के साथ खाना हितकर है।
8. पीलिया :- में गिलोय को चन्दन की तरह घिस कर पानी में घोलकर गुनगुना कर कान में टपकाये इस से पीलिया में लाभ होगा कान का मैल भी निकल जायगा।
9. मूत्र विकार :- में इसका काढ़ा पीने से पेशाब की सभी परेशानियां दूर होती है।
10. भूख की कमी :- होतो सौंठ के चूर्ण के साथ गिलोय का चूर्ण लेना लाभकारी है।
11. श्वेत प्रदर :- (ल्यूकोरिया) के लिए इसका काढ़ा शतावरी चूर्ण के साथ लेना हितकर है।
12. मधुमेह :- डायबटीज़ में इसका ताजा रस दिन में एक दो बार पीना बहुत लाभ करता है।
गिलोय सभी जगह मिलने वाली साधारण सी लेकिन बहुत गुणकारी है। लेकिन ज्यादा उत्तम होती है जो नीम के पेड़ पर चढ़ी हो। आयुर्वेद की कई औषधियों में इसका प्रयोग होता है। आज कल तो इसके बने बनाये शर्बत , बाजार में खूब मिलते है।
मात्रा :- तजा रस दस से बीस मि. यानी एक से दो चम्मच चूर्ण ३ ग्राम और सत्व आधा ग्राम से दो ग्राम तक रोगी के बला बल के अनुसार मात्रा घटाई बड़ाई जा सकती है। इसके सेवन से पहले स्थानीय चिकित्सक से परामर्श अवश्य करे।
वैद्य हरि कृष्ण पाण्डेय "हरीश"
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