वेगो को रोकना रोगो को बुलाना
वेगो को रोकना रोगो को बुलाना
वेग मनुष्यो की प्राकतिक प्रक्रिया है इनका प्रभाव कम या ज्यादा सभी पर पड़ता है। पर कभी कभी यह वेग इतना भयंकर असर भी दिखाते है। आयुर्वेद में चौदह वेग बताये है बोल चाल की भाषा में इनको दबाव, हाजत के नाम से भी जानते है। लेकिन ज्यादातर लोग इनको बहुत हलके ढंग से लेते है। वेगो का असर तो सब पर होता है। किसी को कम किसी को ज्यादा। हाँ इनको दबाना किसी न किसी समस्या को पैदा करना है।
मलवेग:- पखाना रोकने से हाथ-पांव में अकड़न, सिरदर्द छीके आती है, पेट में भरीपन होता है।
मूत्रवेग:- पेशाब की हाजत रोकने से पथरी रोग की सम्भावना होती है।
डकार वेग:- डकार आ रही हो तो उसे रोकना नहीं चाहिए। नहीं तो खाने से अरुचि, खांसी और हिचकी का रोग हो सकते है।
छींक का वेग:- छींक रोकने से सिर में भारी पन, सिरदर्द, इन्द्रियों में शिथिलता, गर्दन में जकड़न होती है।
तृष्णावेग:- प्यास को रोकने से मुख सूखने लगता है। रक्त गाढ़ा होने लगता है। शरीर में फुटन, दर्द और बेचैनी होने लगती है। कानो से कम सुनाई देने लगता है।
क्षुधा वेग:- भूख रोकने से शरीर शिथिल होता है। कमजोरी महसूस होती है। चेहरे पर उदासी आती है।
निद्रावेग :- नींद रोकने से सिर दर्द, आँखों में जलन और लाली, आलस्य, सिर भरी होती है। उबासी आती है। अंग में पीड़ा होती है।
खांसी वेग :- आती खांसी को दबाने से गले में धसक, भोजन में अरुचि होती है। दिल पर भार बढ़ता है। स्वास गति तेज हो जाती है।
श्रमजनित स्वास वेग :- भाग दौड़ करने से, कठिन परिश्रम करने से, सांस तेज चले उसे उक्त वेग कहते है। इसको रोकने से दिल पर भरी पन लगता है। सीने में दर्द होने लगता है। थकान महसूस होती है।
अश्रुवेग :- आंसू रोकने से सिर भारी, आँखों में लाली दिल पर भार महसूस होता है। मन उदास होता है।
वमन वेग : - उलटी रोकने से रक्तपित, नेत्ररोग, स्वास, खांसी ज्वर एवं चेहरे पर भारी पन होता है। चेहरे पर सूजन आ सकती है। काले दाग उभर सकते है।
कामवेग :- को रोकने से प्रमेह, धातुदोष, गुप्तांगो में पीड़ा एवं चित्त भरम होता है।
इनमे से अधिकतर वेग अचानक बनते है। उन्हें रोकना हानिकारक है। लेकिन कुछ लोग इनको शर्म से कुछ मज़बूरी में दबा कर अपने आप पर मुसीबत बुलाते है। यह सारे कुदरती है। समय इन का शमनहितकारी है।
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